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कब तक
कब तक आखिर कब तक-2
गलती किसी की भी हो
मैं माफी मांगता रहूँ
मैं रूठूँ या रूठो तुम
मैं ही मनाता रहूँ
जिद दूर जाने की तुम करो
मैं पास आता रहूँ
रोऊँ मैं या रोओ तुम
आंसू मैं पीता रहूँ
कब तक यूँ ही घुटघुटकर
आखिर मैं जीता रहूँ
कह पाऊं तुमसे कुछ भी नहीं
दर्द यूँ पीता रहूँ
कब तक आखिर कब तक-2
एक दिन तो मेरा हो आखिर
मैं रूठूँ मुझे मनाओ तुम
मैं रोऊँ गले से लगाओ तुम
मैं दूर जाऊं अगर तुमसे तो
ढूंढकर मुझको पास आओ तुम
मैं गुम अंधेरे में हो जाऊं तो
रोशनी बनके मंजिल दिखाओ तुम
-कौस्तुभ त्रिपाठी
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टिप्पणियाँ
Wow awesome 👌🏻
जवाब देंहटाएंकिसी से शिकायत थी?
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